शर्त लगी थी दुनिया की ख़ुशी को एक लफ़्ज़ मे लिखने की…. वो किताबे ढुँढते रह गये मैंने “बेटी” लिख दिया……!!!
Author: pyarishayri
हमसे क्या पूछते हो
हमसे क्या पूछते हो हमको किधर जाना है हम तो ख़ुशबू हैं बहरहाल बिखर जाना है
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ
मैं भी कभी हँसता खेलता था
मैं भी कभी हँसता खेलता था, कल एक पुरानी तस्वीर में देखा था खुद को……..
अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं
अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं देता बरसों मैं इसी शहर का महबूब रहा हूँ
गीली लकड़ी सा इश्क
गीली लकड़ी सा इश्क उन्होंने सुलगाया है…. ना पूरा जल पाया कभी, ना बुझ पाया है….
सबका दिल पिघल सकता है
सबका दिल पिघल सकता है, सिवाय वक्त और तक़दीर के…………
फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं
फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ
मेरे लफ़्ज़ों से न कर मेरे क़िरदार का
मेरे लफ़्ज़ों से न कर मेरे क़िरदार का फ़ैसला; तेरा वज़ूद मिट जायेगा मेरी हकीक़त ढूंढ़ते ढूंढ़ते।
हवा के साथ उड़ गया घर इस परिंदे का
हवा के साथ उड़ गया घर इस परिंदे का, कैसे बना था घोसला वो तूफान क्या जाने !