भाग्य रेखाओं में तुम कहीं भी न थे
प्राण के पार लेकिन तुम्हीं दीखते !
सांस के युद्ध में मन पराजित हुआ
याद की अब कोई राजधानी नहीं
प्रेम तो जन्म से ही प्रणयहीन है
बात लेकिन कभी हमने मानी नहीं
हर नये युग तुम्हारी प्रतीक्षा रही
हर घड़ी हम समय से अधिक बीतते ।