बरसती फुहारों में

बरसती फुहारों में भीगकर थोड़ा आराम सा लगता है,

किसी फ़रिश्ते का नशीला भरा ईक जाम सा लगता है.

अरसे बाद कुछ सुकून के पल हुये जैसे हासिल,

फिजा का रंग किसी बिछड़े की पहचान सा लगता है.

कभी देखता हूँ मतलब में भागती दुनिया को तो,

हर शख्स यहां ना जाने क्यों नाकाम सा लगता है.

दूसरों की क्या बात करें जो खुद का हाल हो बुरा,

कहे कोई लाजवाब वो भी ईक ईल्ज़ाम सा लगता है.

किसी रोज़ हँसते हुये देख ले किसी को कोई,

तो है पूछता क्या बात क्यों परेशान सा लगता है.

दर्द का दर्द जाने दर्द को महसूस करने वाला ही,

उसने दर्द में पुकारा जिसको खुद का नाम सा लगता है.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version