कुछ दरमियाँ नहीं है गर तेरे मेरे तो ये बेचैनियाँ क्यूँ हैं?
लौट आओ कि कुछ रिश्ते बेरुखी से भी नहीं टूटा करते|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कुछ दरमियाँ नहीं है गर तेरे मेरे तो ये बेचैनियाँ क्यूँ हैं?
लौट आओ कि कुछ रिश्ते बेरुखी से भी नहीं टूटा करते|