हवा चुरा ले गयी थी मेरी ग़ज़लों की किताब.. देखो, आसमां पढ़ के रो रहा है और नासमझ ज़माना खुश है कि बारिश हो रही है..!
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आँखों मैं आग है
आँखों मैं आग है,तो होंठों पर है धुंआं आदमी हो गया है करखानों की तरह|
बारिश में उछलते भीगते
बारिश में उछलते भीगते मेरे बचपन को…. अब दफ्तर की खिड़की से निहार लेता हूं….!
तुमसे मिलने का हमने
तुमसे मिलने का हमने निकाल लिया एक रास्ता….. झांक लेते हैं दिल में …आँखों को बन्द करके…!
सब को आता नहीं
सब को आता नहीं,कानून से लड़ने का हुनर आस मजबूर की इंसाफ पे ठहरी देखी
कौन कमबख़्त चाहता है
कौन कमबख़्त चाहता है सुधर जाना हमारी ख़्वाहिश तुम्हारी लतों में शुमार हो जाना !
ये मशवरा है
ये मशवरा है कि पत्थर बना के रख दिल को ये आईना ही रहा तो जरूर टूटेगा
दिल दुखाती थी
दिल दुखाती थी जो पहले अब रास आने लगी है अब उदासी रफ़्ता-रफ़्ता दिल को भाने लगी है…!!
ये चार दिवारें कमबख्त..
ये चार दिवारें कमबख्त…. खुद को घर समझ बैठीं हैं ….
ज़िन्दगी क्या है
ज़िन्दगी क्या है जानने के लिए ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है