इसे नसीहत कहूँ

इसे नसीहत कहूँ या एक जुबानी चोट , एक शख्स कह गया गरीब मोहब्बत नहीं करते !

मुहब्बत मे वह पल

मुहब्बत मे वह पल बहुत खूबसूरत होता है… जब देखना इबादत और छूना गुनाह लगता है…!!!

समाए हो नजरों में

समाए हो नजरों में तुम और ये दिल भी मदहोश है , अपने एहसासों को लिखूं कैसे मेरी कलम खामोश है !

तुम्हारे बाद कैसे गुजरेंगे

तुम्हारे बाद कैसे गुजरेंगे हमारे दिन.. … नवम्बर से बचे तो दिसम्बर मार डालेगा. .

हिसाब करते भी

हिसाब करते भी किसी बात कैसे उनसे, वो मुस्कुरा देते है, होश जाने कहा जाता है?

मुझ पे हंसने की

मुझ पे हंसने की, ज़माने को सजा दी जाये; मैं बहुत खुश हूँ, ये अफवाह उड़ा दी जाये!

कुछ नहीँ था

कुछ नहीँ था मेरे पास खोने को, जब से मिले हो तुम डर गया हूँ मैँ..

तेरी यादें हर रोज़ आ जाती है

तेरी यादें हर रोज़ आ जाती है मेरे पास, लगता है तुमने बेवफ़ाई नही सिखाई इनको..!!

ज़ख़्म दे कर ना

ज़ख़्म दे कर ना पूछा करो, दर्द की शिद्दत, दर्द तो दर्द होता हैं, थोड़ा क्या, ज्यादा क्या !!

मत तोल मोहब्बत मेरी

मत तोल मोहब्बत मेरी अपनी दिल्लगी से…. चाहत देखकर मेरी अक्सर तराज़ू टूट जाते है

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