कुछ रिश्तों को

कुछ रिश्तों को ता-उम्र तरसते रहे, कुछ लोग वक़्त से पहले बिछड़ गए|

ख़ुद के लिए

ख़ुद के लिए या ख़ुदा के लिए जीने की तमन्ना थी, तुम कब ज़िंदगी बन गए रूह को इल्म ही ना हुआ|

आज पास हूँ

आज पास हूँ तो क़दर नहीं है तुमको, यक़ीन करो टूट जाओगे तुम मेरे चले जाने से|

आंसुओ को बहुत

आंसुओ को बहुत समझाया की तन्हाई में आया करो महफ़िल में हमारा मज़ाक न उडाया करो इस पर आंसू तड़प कर बोले इतने लोगो में आपको तन्हा पाते है इसलिए चले आते है|

हो गए थे

हो गए थे जो कल शहीद वो सब तो आज भी जिंदा हैं लाशें तो वो हैं, जो शहादत पर शतरंज सजाये बैठे हैं ।

मैं जानता हूँ

मैं जानता हूँ कि रात तेरे कान भरती है पर क्या करूँ ये दिन बड़ा परेशान करते हैं ।

समझने वालों को

समझने वालों को तो बस इक इशारा काफी होता है वरना कभी कभार बिन चाँद के भी रात का गुजारा होता है ।

उस फूल को

उस फूल को सनद की ज़रूरत ही क्या वसीम जिस फूल की गवाही में ख़ुशबु निकल पड़े।

जिन सवालों के जवाब

जिन सवालों के जवाब नहीं होते वो सवाल, अच्छे सवाल नहीं होते|

रूह में ज़िंदा है

रूह में ज़िंदा है अब तक, मखमली एहसास तेरा आहिस्ता साँसे लेता हूँ, यूँ कहीं बिखर ना जाये…

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