मैं जानता हूँ कि रात तेरे कान भरती है पर क्या करूँ ये दिन बड़ा परेशान करते हैं ।
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अब और ना मुझको
अब और ना मुझको तू उन पुराने किये हुए मेरे फिज़ूल से वादों का हवाला दे बंद कर बक्से में तेरी यादों को कर सकूँ काम अपने, तू बस ऐसा मज़बूत सा ताला दे|
समझने वालों को
समझने वालों को तो बस इक इशारा काफी होता है वरना कभी कभार बिन चाँद के भी रात का गुजारा होता है ।
मेरी फितरत ही
मेरी फितरत ही कुछ ऐसी है कि… दर्द सहने का लुत्फ़ उठाता हु मैं…
उस फूल को
उस फूल को सनद की ज़रूरत ही क्या वसीम जिस फूल की गवाही में ख़ुशबु निकल पड़े।
जिन सवालों के जवाब
जिन सवालों के जवाब नहीं होते वो सवाल, अच्छे सवाल नहीं होते|
हर बार मैं
हर बार मैं ही गलत होता हूँ यह तेरी इक ग़लतफ़हमी है|
रूह में ज़िंदा है
रूह में ज़िंदा है अब तक, मखमली एहसास तेरा आहिस्ता साँसे लेता हूँ, यूँ कहीं बिखर ना जाये…
अपनी मंज़िल पे
अपनी मंज़िल पे पहुंचना और खड़े रहना भी, कितना मुश्किल है बड़े होकर बड़े रहना भी ..!!
पा सकेंगे न उम्र भर
पा सकेंगे न उम्र भर जिस को जुस्तुजू आज भी उसी की है|