अभी तो तड़प

अभी तो तड़प-तड़प के दिन के उजालों से निकला हू… . न जाने रात के अँधेरे और कितना रुलायेंगे.

मुझे भी ज़िन्दगी

मुझे भी ज़िन्दगी में तुम ज़रूरी मत समझ लेना.. सुना है तुम ज़रूरी काम अक्सर भूल जाते हो..

रोज हर मोड़ पर

रोज हर मोड़ पर तु मुझे मिल जाती है. ऐ उदासी, कहीं तु भी मेरी दीवानी तो नही है.

तुम जरा हाथ

तुम जरा हाथ मेरा थाम के देखो तो सही लोग जल जाएंगे महफ़िल में चिरोगों की तरह

भूलना भी हैं

भूलना भी हैं…जरुरी याद रखने के लिए.. पास रहना है..तो थोडा दूर होना चाहिए..

इन्सानियत की रौशनी

इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ… साये हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ..

फ़ुटपाथ पर सोने

फ़ुटपाथ पर सोने वाले हैरान हैं आती-जाती गाड़ियों से… कम्बख़्त जिनके पास घर हैं…वो घर क्यूँ नहीं जाते…

लाख रख दो

लाख रख दो रिश्तों की दुनिया तराजु पर… सारे रिश्तों का वज़न बस आधा निकलेगा… सब की चाहत एक तरफ़ हो जाए फिर भी… माँ का प्यार नौ महीने ज्यादा निकलेगा…

जीने का सलिका

जीने का सलिका सिखा दिया तूने . . . अब आंसू भी निकलते है तो मुस्कान के साथ

रोड किनारे चाय

रोड किनारे चाय वाले ने हाथ में गिलास थमाते हुए पूछा…… “चाय के साथ क्या लोगे साहब”? ज़ुबाँ पे लव्ज़ आते आते रह गए “पुराने यार मिलेंगे क्या”?

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