उम्र भर ख़्वाबों की

उम्र भर ख़्वाबों की मंज़िल का सफ़र जारी रहा, ज़िंदगी भर तजुरबों के ज़ख़्म काम आते रहे…

बस इतना ही

बस इतना ही जाना है मुझे तुमने दूर ही रहो जितना, जेहन में उतर आऊंगा|

तुम दूर भी

तुम दूर भी हो पर लगता है यही हो तुम कहो इश्क़ में तुम्हारा क्या हाल है|

इश्क़ की चोट

इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही, दर्द कम हो या ज़ियादा हो मगर हो तो सही…

ये सुलगते जज्बात

ये सुलगते जज्बात दे रहे है गवाही क्यों तुम भी हो न इस इश्क़ के भवर में

तू भले ही रत्ती भर

तू भले ही रत्ती भर ना सुनती है मै तेरा नाम बुदबुदाता रहता हूँ

और कितना परख़ोगे

और कितना परख़ोगे तुम मुझे? क्या इतना काफ़ी नहीं कि मैनें तुम्हें चुना है।

तुम इतने कठिन क्यूँ हो

तुम इतने कठिन क्यूँ हो की मैं तुम्हे समझ नहीं पाता, थोड़े से सरल हो जाओ सिर्फ मेरे लिए !!

किसी ने क्या खूब कहा

किसी ने क्या खूब कहा है सिर्फ गुलाब देने से अगर मोहब्बत हो जाती, तो माली सारे ‘शहर’ का महबूब बन जाता..

रब के फ़ैसले पर

रब के फ़ैसले पर भला कैसे करुँ शक, सजा दे रहा है ग़र वो कुछ तो गुनाह रहा होगा !!

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