ऐ खुदा बस

ऐ खुदा बस एक ही ख्वाईस है तेरे से । ये जो चैन से सौ रहे है ना इनको कभी इश्क का रोग मत लगाना ।।

कल क्या खूब इश्क़ से

कल क्या खूब इश्क़ से मैने बदला लिया, कागज़ पर लिखा इश्क़ और उसे ज़ला दिया..!!

जब आग की वादी में

जब आग की वादी में ठहरा है सफ़र करना फिर मौत से क्या डरना फिर मौत से क्या डरना |

उसी को लिख लिख कर

उसी को लिख लिख कर मिटा रहा हूँ,जिसे मिटाकर आज तक कुछ लिखा नही मैंने।

फुर्सत में कभी

फुर्सत में कभी तुझपे.एक कलाम लिखेंगे कभी आना मेरे शहर तुम पे शाम लिखेंगे|

पाँवों से उड़ा देते

क्या खूब होता जो यादें भी रेत होतीं, मुट्ठी से गिरा देते पाँवों से उड़ा देते !!

मैं एक क़तरा हूँ

मैं एक क़तरा हूँ मुझे ऐसी शिफ़त दे दे मौला , कोई प्यासा जो नजर आये तो दरिया बन जाऊ ।।

माना कि औरों के जितना

माना कि औरों के जितना पाया नहीं…पर..खुश हूँ कि कभी स्वयं को गिरा कर कुछ उठाया नहीं..

हाथ पर हाथ रखा

हाथ पर हाथ रखा उसने तो मालूम हुआ, अनकही बात को किस तरह सुना जाता है !!

शाम हसीन क्या हुई

ज़रा सी शाम हसीन क्या हुई.. उनकी कमी दिल को खलने लगी..!!

Exit mobile version