कौन किसे चाहता है आजकल सवाली होकर… अहमियत बादल भी खो देते हैं अक्सर… खाली होकर…
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अंधों को दर्पण
अंधों को दर्पण क्या देना, बहरों को भजन सुनाना क्या.? जो रक्त पान करते उनको, गंगा का नीर पिलाना क्या.?
पर्ची जो तेरे दिल की
पर्ची जो तेरे दिल की आरजुओं की हाथ लग जाती अगर… इश्क़ में तेरे हम भी नकल कर के पास हो जाते …
तपिश अपने बदन की
तपिश अपने बदन की मुझको दे दे, मैं पत्थर हूँ पिघलना चाहता हूँ……!!
बस बरसात रह गयी…
ना इश्क़, ना वादा, ना मंज़िलें, ना शोहरतें… इस साल भी बरसात बस बरसात रह गयी…।।
मेरे दराज़ में
मेरे दराज़ में रक्खा है अब भी ख़त उसका, पुराना इश्क़, पुराना हिसाब हो जैसे…
फितरत किसीकी यूँ
फितरत किसीकी यूँ ना आजमाया कर ए जिंदगी, हर शख्स अपनी हद में लाजवाब होता है|
आँख से पानी बनकर
आँख से पानी बनकर निकल रहे हो,यकीनन तुम पत्थर ही थे।
सस्ता सा कोई इलाज़
सस्ता सा कोई इलाज़ बता दो इस मोह्ब्बत का ..! “एक गरीब इश्क़ कर बैठा है इस महंगाई के दौर मैं”….!!
मुझे सवाल नहीं
मुझे सवाल नहीं आते और उन्हें जवाब…. खामोश गुफ्तगू का मज़ा ही कुछ और है…..