सोचा था उस से

सोचा था उस से बिछडेंगे तो मर जायेंगे हम जानलेवा खौफ था बस, हुआ कुछ भी नही|

सलीक़ा आ गया है

हम को टालने का शायद तुम को सलीक़ा आ गया है बात करते तो हो लेकिन , अब तुम अपने नहीं लगते |

ला तेरे पैरों में

ला तेरे पैरों में मरहम लगा दूँ ऐ दोस्त मेरे दिल को ठोकर मारने से चोट तो आई होगी

जिस को भी देखा

जिस को भी देखा उसे मुखलिस ही पाया बहुत फरेब दिया है मेरी निगाह ने मुझे|

किसी को घर से

किसी को घर से निकलते ही मिल गयी मंज़िल, कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा । कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िन्दगी जैसे, तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा ।

नाम बदनाम होने की

नाम बदनाम होने की चिंता छोड़ दी मैंने… अब जब गुनाह होगा, तो मशहुर भी तो होगे…!

कुछ पेचीदा लफ्जों में

कुछ पेचीदा लफ्जों में मैंने अपनी बात रखी, जमाना हँसता गया, जज्बात रोते गये…!

यूं न झाकों मेरी रुह में..

यूं न झाकों मेरी रुह में…….. कुछ ख्वाहिशें मेरी वहाँ बेनकाब रहती हैं ।

जिन्दगी तो हर दम

जिन्दगी तो हर दम बरबाद करता है ये दिल, ये बेचारी जान तो ख़ामखां मारी जाती है।।

मैं वक़्त की दहलीज़ पे

मैं वक़्त की दहलीज़ पे ठहरा हुआ पल हूँ, क़ायम है मेरी शान कि मैं ताजमहल हूँ !

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