हमने कब कहा कीमत समझो

हमने कब कहा कीमत समझो तुम मेरी… , हमें बिकना ही होता तो यूँ तन्हा ना होते…. …… ……….

बिन तेरे मुझको ज़िंदगी

बिन तेरे मुझको ज़िंदगी से ख़ौफ़ लगता है, किश्तों में मर रहा हूँ रोज़ लगता है……..

मेरी गली से गुजरा.. घर तक

मेरी गली से गुजरा.. घर तक नहीं आया, , , , अच्छा वक्त भी करीबी रिश्तेदार निकला… …… ………..

हमसे क्या पूछते हो

हमसे क्या पूछते हो हमको किधर जाना है हम तो ख़ुशबू हैं बहरहाल बिखर जाना है

अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी

अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ

मैं भी कभी हँसता खेलता था

मैं भी कभी हँसता खेलता था, कल एक पुरानी तस्वीर में देखा था खुद को……..

अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं

अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं देता बरसों मैं इसी शहर का महबूब रहा हूँ

गीली लकड़ी सा इश्क

गीली लकड़ी सा इश्क उन्होंने सुलगाया है…. ना पूरा जल पाया कभी, ना बुझ पाया है….

फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं

फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ

मेरे लफ़्ज़ों से न कर मेरे क़िरदार का

मेरे लफ़्ज़ों से न कर मेरे क़िरदार का फ़ैसला; तेरा वज़ूद मिट जायेगा मेरी हकीक़त ढूंढ़ते ढूंढ़ते।

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