झुठी शान के परिंदे

झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं, तरक्की के बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती।

तमाम रिश्तों को

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया हूँ, उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला|

कोशिश करता हूँ

कोशिश करता हूँ कि अंधेरे खत्म हो लेकिन, कहीं जुगनू नही मिलता, कहीं चाँद अधूरा है।

इस दुनिया में

इस दुनिया में कुछ अच्छा रहने दो, बच्चों को बस बच्चे रहने दो|

आज लफ्जों को

आज लफ्जों को मय पीने बुलाया है, बात बन गयी तो जरूर गजल होगी ।

पढ़ते क्या हो

पढ़ते क्या हो आंखों में मेरी कहानी…. मस्ती में मगन रहना तो आदत है मेरी पुरानी…

बहुत से कर्ज हैं

बहुत से कर्ज हैं चुकाने ऐ उम्र जरा ठहर जा। बात मान ले मेरी अब तो तू घर जा।

सोचता हूं जिन्दा हूं

सोचता हूं जिन्दा हूं, मांग लूं सब से माफी, ना जाने मारने के बाद, कोई माफ करे या न करे|

अपने अहसासों को

अपने अहसासों को ख़ुद कुचला है मैंने, क्योंकि बात तेरी हिफाज़त की थी.!

यकीं नहीं है

यकीं नहीं है मगर आज भी ये लगता है मेरी तलाश में शायद बहार आज भी है … ??

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