पिघलती बर्फ सी

पिघलती बर्फ सी है ये जवानीं ! जुड़ी है साथ सबके ये कहानीं !! जुबां से आग फिर भी हैं वो लगाते ! सुना फ़ितरत भी उनकी है पुरानी !!

हर लम्हे में शामिल है

मेरी मसरूफियत के हर लम्हे में शामिल है उसकी यादेँ…सोचो मेरी फुरसतों का आलम क्या होगा..

कुछ तो शराफत सीख ले

कुछ तो शराफत सीख ले ऐ ‘मोहब्बत’ शराब से, बोतल पे कम से कम लिखा तो है कि मैं जानलेवा हूँ..

मेरी दहलीज़ पर

मेरी दहलीज़ पर आ कर रुकी है..हवा_ऐ_मोहब्बत, मेहमान नवाज़ी का शौक भी है उजड़ जाने खौफ भी…

रहे दो दो फ़रिश्ते साथ

रहे दो दो फ़रिश्ते साथ अब इंसाफ़ क्या होगा किसी ने कुछ लिखा होगा किसी ने कुछ लिखा होगा

नसीहते न दो

नसीहते न दो, हम इश्क़ करने वालो को , ये आग और भी भड़क जायेगी कह दो बुझाने वालो से

झुठी शान के परिंदे

झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं, तरक्की के बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती।

तमाम रिश्तों को

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया हूँ, उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला|

कोशिश करता हूँ

कोशिश करता हूँ कि अंधेरे खत्म हो लेकिन, कहीं जुगनू नही मिलता, कहीं चाँद अधूरा है।

उसे जो लिखना होता है

उसे जो लिखना होता है, वही वो लिख के रहती है, क़लम को सर कलम होने का कोई डर नहीं होता।

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