समुद्र बड़ा होकर भी, अपनी हद में रहता है, जबकि इन्सान छोटा होकर भी अपनी हद भूल जाता है…
Category: Urdu Shayri
तेरी शब मेरे
तेरी शब मेरे नाम हो जाये नींद मुझ पर हराम हो जाये लौट आता है घर परिन्दा भी इससे पहले कि शाम हो जाये
मैं बुरा हूँ
मैं बुरा हूँ तो बुरा ही सही…. कम से कम शराफत का दिखावा तो नहीं करता..
जो तुम्हारा था
जो तुम्हारा था ही नहीं उसे खोना कैसा,, जब रहना ही है तनहा तो रोना कैसा..
मेरी हर बात का
मेरी हर बात का जवाब रखते हो तुम क्या साथ में कोई किताब रखते हो तुम
मैं बंद आंखों से
मैं बंद आंखों से उसको देखता हूं हमारे बीच में पर्दा नहीं है|
ये सोच कर
ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले..
दीवार क्या गिरी
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की.. लोगों ने मेरे आँगन से रास्ते बना लिए…
ज़िंदगी के दो पड़ाव
ज़िंदगी के दो पड़ाव अभी उम्र नहीं है अब उम्र नहीं है ।
जब हौसला बना
जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का… फिर देखना फिज़ूल है कद आसमान का…