समुद्र बड़ा होकर भी

समुद्र बड़ा होकर भी, अपनी हद में रहता है, जबकि इन्सान छोटा होकर भी अपनी हद भूल जाता है…

तेरी शब मेरे

तेरी शब मेरे नाम हो जाये नींद मुझ पर हराम हो जाये लौट आता है घर परिन्दा भी इससे पहले कि शाम हो जाये

मैं बुरा हूँ

मैं बुरा हूँ तो बुरा ही सही…. कम से कम शराफत का दिखावा तो नहीं करता..

जो तुम्हारा था

जो तुम्हारा था ही नहीं उसे खोना कैसा,, जब रहना ही है तनहा तो रोना कैसा..

मेरी हर बात का

मेरी हर बात का जवाब रखते हो तुम क्या साथ में कोई किताब रखते हो तुम

मैं बंद आंखों से

मैं बंद आंखों से उसको देखता हूं हमारे बीच में पर्दा नहीं है|

ये सोच कर

ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले..

दीवार क्या गिरी

दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की.. लोगों ने मेरे आँगन से रास्ते बना लिए…

ज़िंदगी के दो पड़ाव

ज़िंदगी के दो पड़ाव अभी उम्र नहीं है अब उम्र नहीं है ।

जब हौसला बना

जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का… फिर देखना फिज़ूल है कद आसमान का…

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