इस ज़मीं पर तू खूब गा ले नदी फिर समंदर में डूब जाना है|
Category: Shayri
लफ्ज़ बीमार से
लफ्ज़ बीमार से पड़ गये है आज कल….. एक खुराक तेरे दीदार की चाहिए|
गलती पर साथ
गलती पर साथ छोड़ने वाले तो बहुत मिले, गलती पर समझा कर साथ निभाने वाले की ज़रूरत है|
बातों से सीखा है
बातों से सीखा है हमने आदमी को पहचानने का फन… जो हल्के लोग होते है,हर वक्त बातें भारी भारी करते हैं..!!
खूल सकती है
खूल सकती है, गाँठे बस जरा सी जतन से, पर लोग कैचियाँ चला कर, सारा फ़साना बदल देते है ।
अंदर से तो
अंदर से तो कब के मर चुके है हम, ए मौत तू भी आजा लोग सबूत मांगते है !!
घर मे रहता हूँ
मुझसे ना माँगिए मशवरे… मंदिर और मस्जिद के मसलो पर मै इंसान हूँ साहब…. खुद किराए के घर मे रहता हूँ !
यकीन कर लो
यकीन कर लो भूख मजहब से बड़ी होती है, तवायफ अपने खरीददार का मजहब नहीं देखती…!!
लोग कहते है
लोग कहते है कि आदमी को अमीर होना चाहिए.. और हम कहते है कि आदमी का जमीर होना चाहिए……..
अगर पाना है
अगर पाना है मंझिल तो अपना रहनुमा खुद बनो, वो अक्सर भटक जाते है जिन्हें सहारा मिल जाता|