जरुरतों ने कुचल डाला है मासूमियत को साहब यूं.. वक्त से पहले ही बचपन रूठ गया|
Category: Shayri
हर घड़ी ख़ुद से
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा मुद्दतें बीत गईं इक ख़्वाब सुहाना… Continue reading हर घड़ी ख़ुद से
मेरे इश्क़ का
मुझे अपने लफ़्जो से आज भी शिकायत है, ये उस वक़त चुप हो गये जब इन्हें बोलना था…
कुछ ऐसे लगाव
कुछ ऐसे लगाव और चाहते होती हैं हाथो में हाथ नही होते और रूह से रूह बंधी होती है……
ज़रा ज़िद्दी हूँ
ज़रा ज़िद्दी हूँ ख़्वाब देखने से बाज़ नहीं आता, इतनी सी बात पर हकीक़तें रूठ जाती है मुझसे…
पाकीज़ा दिलों की
पाकीज़ा दिलों की तो , कुछ बात ही अलग है , मिलता है जिससे भी , वजूद महक जाता है ॥
फासला भी ज़रूरी है
फासला भी ज़रूरी है चिराग रोशन करते वक्त तजुर्बा यह हाथ आया हाथ जल जाने के बाद|
सोचता हूँ एक
सोचता हूँ एक शमशान बना लुँ दिल के अंदर मरती है रोज ख्वाईशें एक एक करके….!!!!
अजब चिराग हूँ
अजब चिराग हूँ दिन रात जलता रहता हूँ थक गया हूँ हवा से कहो बुझाये मुझे|
कसम ले लो
कसम ले लो जो महफ़िल में तुम्हे दानिश्ता देखा हो नजर आखिर नजर है बेइरादा उठ गयी होगी ……