कभी यूँ भी हुआ है

कभी यूँ भी हुआ है हंसते-हंसते तोड़ दी हमने… हमें मालूम नहीं था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें..!

कई रिश्तों को परखा

कई रिश्तों को परखा तो नतीजा एक ही निकला, जरूरत ही सब कुछ है, महोब्बत कुछ नहीं होती.

मुझ पर इलज़ाम

मुझ पर इलज़ाम झूठा है …. मोहब्बत की नहीं थी…. हो गयी थी|

वो रूह में उतर जाये

वो रूह में उतर जाये तो पा ले मुझको इश्क़ के सौदे मैं जिस्म नहीं तौले जाते|

दो घूँट पानी से

हिचकियों में वफ़ा को ढूँढ रहा था मैं..! कमबख्त गुम हो गई…दो घूँट पानी से .. !!

अब कहां दुआओं में

अब कहां दुआओं में वो बरकतें,…वो नसीहतें …वो हिदायतें, अब तो बस जरूरतों का जुलुस हैं …मतलबों के सलाम हैं”………

यादों की बारिश

हमने भी मुआवजे की अर्जी डाली है साहब, उनकी यादों की बारिश ने काफ़ी नुकसान पहुँचाया है !!

एक ताबीर की सूरत

एक ताबीर की सूरत नज़र आई है इधर सो उठा लाया हूँ सब ख़्वाब पुराने वाले |

हमीं अकेले नहीं जागते हैं

हमीं अकेले नहीं जागते हैं रातों में… उसे भी नींद बड़ी मुश्किलों से आती है..

सजा यह मिली की

सजा यह मिली की आँखों से नींदें छीन ली उसने,, जुर्म यह था कि उसके साथ रहने का ख्वाब देखा था |

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