वक़्त रुका-सा है

एक घडी तुमने जो मुझे पहनाई थी कभी, तुम तो आगे बढ़ गयी पर उसका वक़्त रुका-सा है !!

ये भ्रम था

ये भ्रम था की सारा बाग़ अपना है …. . पर तूफान के बाद पता चला …. की सूखे पत्तों पे भी हक….बेरहम हवाओ का था|

कहानी खत्म हो तो

कहानी खत्म हो तो कुछ ऐसे खत्म हो की… लोग रोने लगे तालिया बजाते बजाते…।।

वो मुझको डसता तो है

वो मुझको डसता तो है पर ज़हर नहीं छोड़ता… लिहाज़ रखता है कुछ मेरी आस्तीन में पलने का…

घर चाहे कैसा भी हो

घर चाहे कैसा भी हो, उसके एक कोने में, खुलकर हंसने की जगह रखना, सूरज कितना भी दूर हो, उसको घर आने का रास्ता देना, कभी कभी छत पर चढ़कर तारे अवश्य गिनना, हो सके तो हाथ बढ़ा कर, चाँद को छूने की कोशिश करना, अगर हो लोगों से मिलना जुलना तो, घर के पास… Continue reading घर चाहे कैसा भी हो

कभी लिखे नहीं जाते…

सिर्फ महसूस किये जाते हैं .. कुछ एहसास कभी लिखे नहीं जाते…

जिंदगी के मंच पर

जिंदगी के मंच पर तू किस तरह निभा अपना किरदार… की परदा गिर भी जाये … तालिया बजती रहे ।

आये हो निभाने जब

आये हो निभाने जब किरदार जमी पर कुछ ऐसा करो कि परदा गिर जाये मगर तालियां फिर भी बजती रहे|

पहले सौ बार

पहले सौ बार इधर और उधर देखा है तब कहीं डर के तुम्हें एक बार देखा है|

खुल जाता है

खुल जाता है तेरी यादों का बाजार सुबह सुबह, और हम उसी रौनक में पूरा दिन गुजार देते है !!

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