खत क्या लिखा….. मानवता के पते पर डाकिया ही गुजर गया पता ढूढते ढूढते…..
Category: वक़्त शायरी
समझ ही नहीं पाता
कुछ रिश्तों के खत्म होने की वजह सिर्फ यह होती है कि.. एक कुछ बोल नहीं पाता और दुसरा कुछ समझ ही नहीं पाता।
ये क्यूँ था
ये क्यूँ था जनाज़े पे हुजुम मेरे? जबकि तन्हा तन्हा थी जिंदगी।
अजीब सी बस्ती में
अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा। जहाँ लोग मिलते कम, झांकते ज़्यादा है।
मुहब्बत की कोई कीमत
मुहब्बत की कोई कीमत मुकर्रर हो नही सकती है, ये जिस कीमत पे मिल जाये उसी कीमत पे सस्ती है…..
चलने दो जरा आँधियाँ
चलने दो जरा आँधियाँ हकीकत की, न जाने कौन से झोंके मैं अपनो के मुखौटे उड़ जाये।
ख्वाहिशों की चादर
ख्वाहिशों की चादर तो कब की तार तार हो चुकी…!! देखते हैं वक़्त की रफूगिरि क्या कमाल करती हैं…!!
करीब ना होते हुए भी
करीब ना होते हुए भी करीब पाओगे हमें क्योंकि… एहसास बन के दिल में उतरना आदत है मेरी….
आँखे ज़िसे चुने
आँखे ज़िसे चुने वो सही हो या ना हो, दिल से किया हुआ चुनाव कभी गलत नहीं होते..!!
कैसे बदलदू मै
कैसे बदलदू मै फितरत ए अपनी मूजे तुम्हें सोचते रहनेकी आदत सी हो गई है