जानती हूँ फिर भी पूछती हूँ मैं, तुम आइना में देखकर बताओं की मेरी पसंद कैसी है|
Category: व्यंग्यशायरी
तुम्हारी राह में
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते, इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते…
ये रहेगी यूँ
ये रहेगी यूँ ही ख़ाली पूरी होगी खला कैसे। ज़िक्र तेरा ही ना हो तो महफ़िल भला कैसे।
तेरे ख्वाबों का भी
तेरे ख्वाबों का भी है शौक, तेरी यादो में भी है मजा, समझ नहीं आता सो कर तेरा दीदार करूँ या जाग कर तुझे याद करूँ…
ख़ंजर चले किसी पे
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम… सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है…
मोहब्बत का कोई रंग
मोहब्बत का कोई रंग नहीं फिर भी वो रंगीन है, प्यार का कोई चेहरा नहीं फिर भी वो हसीन है।
सिर्फ चाकू-छुरों पर
सिर्फ चाकू-छुरों पर, बंदिश क्यों हैं जनाब; कुछ निगाहें भी तो, कातिल होती हैं!
फिर एक दिन
फिर एक दिन ऐसा भी आया जिन्दगी में, की मैंने तेरा नाम सुनकर मुस्कुराना छोड़ दिया !!
यादों की किम्मत
यादों की किम्मत वो क्या जाने, जो ख़ुद यादों के मिटा दिए करते हैं, यादों का मतलब तो उनसे पूछो जो, यादों के सहारे जिया करते हैं…
प्यार में वो हम को
प्यार में वो हम को बेपनाह कर गये, फिर ज़िनदगीं में हम को तन्नहा कर गये, चाहत थी उनके इश्क में फ़नाह होने की, पर वो लौट कर आने को,भी मना कर गये..