हाथ बेशक छूट गया

हाथ बेशक छूट गया,लेकिन वजूद उसकी उंगलियो में ही रह गया…

अब कहां दुआओं

अब कहां दुआओं में वो बरक्कतें,… वो नसीहतें … वो हिदायतें, अब तो बस … जरूरतों का जुलुस हैं … मतलबों के सलाम हैं

मेरे अल्फ़ाज़ भी

मेरे अल्फ़ाज़ भी, नाराज़ है मुझसे, मैं वो लिख भी नहीं पा रहा, जो महसूस कर रहा हूँ|

मैंने पूछा उनसे

मैंने पूछा उनसे, भुला दिया मुझको कैसे चुटकियाँ बजा के वो बोली ऐसे, ऐसे, ऐसे |

खतों से मीलों सफर

खतों से मीलों सफर करते थे जज़्बात कभी अब घंटों बातें करके भी दिल नहीं मिलते

वक़्त रुका-सा है

एक घडी तुमने जो मुझे पहनाई थी कभी, तुम तो आगे बढ़ गयी पर उसका वक़्त रुका-सा है !!

ये भ्रम था

ये भ्रम था की सारा बाग़ अपना है …. . पर तूफान के बाद पता चला …. की सूखे पत्तों पे भी हक….बेरहम हवाओ का था|

कहानी खत्म हो तो

कहानी खत्म हो तो कुछ ऐसे खत्म हो की… लोग रोने लगे तालिया बजाते बजाते…।।

वो मुझको डसता तो है

वो मुझको डसता तो है पर ज़हर नहीं छोड़ता… लिहाज़ रखता है कुछ मेरी आस्तीन में पलने का…

घर चाहे कैसा भी हो

घर चाहे कैसा भी हो, उसके एक कोने में, खुलकर हंसने की जगह रखना, सूरज कितना भी दूर हो, उसको घर आने का रास्ता देना, कभी कभी छत पर चढ़कर तारे अवश्य गिनना, हो सके तो हाथ बढ़ा कर, चाँद को छूने की कोशिश करना, अगर हो लोगों से मिलना जुलना तो, घर के पास… Continue reading घर चाहे कैसा भी हो

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