दिल पे क्या गुज़री

दिल पे क्या गुज़री वो अनजान क्या जाने, प्यार किसे कहते है वो नादान क्या जाने; हवा के साथ उड़ गया घर इस परिंदे का; कैसे बना था घोसला वो तूफान क्या जाने……

मैंने निब तोड़ दी

किताब खोलकर उसने कहा “अच्छा अब लिखो..जिंदगी” “तुम” लिख कर मैंने निब तोड़ दी…

कर लेता हूँ

कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ! की खुदा नूर भी बरसाता है, आज़माइशों के बाद !!

ये उदासियां ही इश्क

ये उदासियां ही इश्क की पहचान हैं…, गर मुस्करा दिये.. तो इश्क बुरा मान जायेगा !!

कर लो इज़ाफ़ा

कर लो इज़ाफ़ा तुम अपने गुनाहों में, मांग लो एक बार हमको दुआओं में …

फिर न सिमटेगी

फिर न सिमटेगी मोहब्बत जो बिखर जायेगी ! ज़िंदगी ज़ुल्फ़ नहीं जो फिर से संवर जायेगी ! थाम लो हाथ उसका जो प्यार करे तुमसे ! ये ‪‎ज़िंदगी‬ फिर न मिलेगी जो गुज़र जायेगी !!

मेरी आवारगी में

मेरी आवारगी में कुछ दखल तुम्हारा भी है ! क्यों की जब तुम्हारी याद आती है ! तो घर अच्छा नही लगता !!

अकेले ही काटना है

अकेले ही काटना है मुझे जिंदगी का सफर..पल दो पल साथ रहकर मेरी आदत ना खराब कर..

मिल सके आसानी से

मिल सके आसानी से उसकी ख्वाहिश किसे है ! ज़िद तो उसकी है जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं !!

ख़ाक तरक़्क़ी की आज

क्या ख़ाक तरक़्क़ी की आज की दुनिया ने… मरीज़-ए-इश्क़ तो आज भी लाइलाज बैठे हैं!!!

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