इन में दीखता है

इन में दीखता है मेरा चेहरा ज़माने भर को, अपनी आँखों की ज़रा नज़र उतरा कीजिये..

हम जिस के हो गए

हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी|

खोटे सिक्के जो

खोटे सिक्के जो अभी अभी चले है बाजार में। वो भी कमियाँ खोज रहे है मेरे किरदार में।।

तुझे ही फुरसत ना थी

तुझे ही फुरसत ना थी किसी अफ़साने को पढ़ने की, मैं तो बिकता रहा तेरे शहर में किताबों की तरह..

वो आँख भी

वो आँख भी मिलाने की इजाजत नहीं देते और ये दिल उनको निगाहों में बसाने पे तुला है !

तेरे करीब आकर

तेरे करीब आकर बडी उलझन में हूँ, मैं गैरों में हूँ या तेरे अपनो में हूँ|

ज़िन्दगी का सफर

ज़िन्दगी का सफर इस कदर, ‘सुहाना’ होना चाहिए, सितम भी अगर हो तो, दिल ‘शायराना’ होना चाहिए।

अब के गुफ्तगू

ये खामोशी जो अब के गुफ्तगू के बीच ठहरी है, यही इक बात सारी गुफ्तगू में सबसे गहरी है|

हाथ थाम के चल दिए!!

जला कर हाथ पर दीप ,ख़ैर मांगते रहे उनके लिए… वो उठे और किसी ग़ैर का हाथ थाम के चल दिए!!

धोखा न खाइये जनाब

खूबसूरती से धोखा न खाइये जनाब, तलवार कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो, मांगती तो खून ही है!!!

Exit mobile version