सूखने लगी है….स्याही शायद,ज़ख़्मों की दवात में…
वरना वो भी दिन थे,दर्द रिसता था धीरे-धीरे !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
सूखने लगी है….स्याही शायद,ज़ख़्मों की दवात में…
वरना वो भी दिन थे,दर्द रिसता था धीरे-धीरे !