साहिल पे बैठे यूँ सोचता हुं आज,
कौन ज़्यादा मजबूर है….?
ये किनारा, जो चल नहीं सकता,
या वो लहर, जो ठहर नहीं सकती…!!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
साहिल पे बैठे यूँ सोचता हुं आज,
कौन ज़्यादा मजबूर है….?
ये किनारा, जो चल नहीं सकता,
या वो लहर, जो ठहर नहीं सकती…!!!