तुझे हम भी हर पल यूँ

ऐ जिंदगी, तुझे हम भी हर पल यूँ सताएं
तो क्या तमाशा हो
जो तुझ से कर के हर वादा यूँ न निभाएं
तो क्या तमाशा हो
जो हम भी हर बात पर यूँ एहसान जताएं
तो क्या तमाशा हो
जो कभी हमारे दिल तक न पहुँचे तेरी सदाएं
तो क्या तमाशा हो
जो हम भी न माफ़ करे तेरी ये खताएं
तो क्या तमाशा हो
जो न बरसे कभी, बन जाएं वो घटाएं
तो क्या तमाशा हो
जो हम भी सीख लें तेरी वाली बफ़ाएं
तो क्या तमाशा हो
जरा सोच तो, जो हम न देखे तेरी ये अदाएं
तो क्या तमाशा हो|

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