मै खड़ा ही रहा.., पूछता पूछता…
उसने नज़रें झुकाई,जवाब हो गया ||
फलसफा ही पढ़ा था, सफा दर सफा,
उसने जो लिख दिया ,वो किताब हो गया ||
मैंने उम्र गुज़ारी ,उनके इंतजार में
वो मुस्कुरा जो दिए तो हिसाब हो गया ||
मै तरसता.. रहा… अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||
दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे….
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया ||