ख़्वाबों की पुट्टी

ख़्वाबों की पुट्टी से ख्वाहिशों की दीवार संवारता हूँ
रोज़ ही ज़रुरतें सीलन बनकर उधेड़ देतीं हैं उन्हें|

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