हर इक चेहरा

सहमा सहमा हर इक चेहरा, मंज़र मंज़र खून में तर.. शहर से जंगल ही अच्छा है, चल चिड़िया तू अपने घर.!

ले चल कही दूर

ले चल कही दूर मुझे तेरे सिवा जहाँ कोई ना हो.. बाँहो मे सुला लेना मुझको फिर कोई सवेरा ना हो.

शायरी भी एक मीठा जुल्म है

शायरी भी एक मीठा जुल्म है करते रहो या ..या फिर …पढ़ते रहो….!!

कभी इश्क़ करो

कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से.. कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता…

उन्होंने ये सोचकर

उन्होंने ये सोचकर अलविदा कह दिया कि गरीब है, मोहब्बत के अलावा क्या देगा

सीखा है मैने ज़िन्दगी से

सीखा है मैने ज़िन्दगी से एक तजुर्बा…. ज़िम्मेदारी इंसान को वक़्त से पहले बड़ा बना देती है..

किफायत रंग लाती है

किफायत रंग लाती है इरादा जो नेक हो तेरा, सिर्फ सिक्के जोड़ लेने से अमीरी नही आती….

दौलत-ए-इश्‍क़

दौलत-ए-इश्‍क़ नहीं बाँध के रखने के लिये इस ख़जाने को जहाँ तक हो लुटाते रहिये.!!

वो एक ही चेहरा

वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में, जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता। मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा, जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यों नहीं जाता।

सुना है इश्क की

सुना है इश्क की सजा मौत होती है… तो लो मार दो हमे क्यूंकि प्यार करते है हम आपसे|

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