तुम जरा हाथ

तुम जरा हाथ मेरा थाम के देखो तो सही लोग जल जाएंगे महफ़िल में चिरोगों की तरह

भूलना भी हैं

भूलना भी हैं…जरुरी याद रखने के लिए.. पास रहना है..तो थोडा दूर होना चाहिए..

इन्सानियत की रौशनी

इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ… साये हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ..

फ़ुटपाथ पर सोने

फ़ुटपाथ पर सोने वाले हैरान हैं आती-जाती गाड़ियों से… कम्बख़्त जिनके पास घर हैं…वो घर क्यूँ नहीं जाते…

लाख रख दो

लाख रख दो रिश्तों की दुनिया तराजु पर… सारे रिश्तों का वज़न बस आधा निकलेगा… सब की चाहत एक तरफ़ हो जाए फिर भी… माँ का प्यार नौ महीने ज्यादा निकलेगा…

जीने का सलिका

जीने का सलिका सिखा दिया तूने . . . अब आंसू भी निकलते है तो मुस्कान के साथ

रोड किनारे चाय

रोड किनारे चाय वाले ने हाथ में गिलास थमाते हुए पूछा…… “चाय के साथ क्या लोगे साहब”? ज़ुबाँ पे लव्ज़ आते आते रह गए “पुराने यार मिलेंगे क्या”?

अक्सर चाकू-छुरी वही खोलते है

अक्सर चाकू-छुरी वही खोलते है जो कमज़ोर होते है, वरना हम जैसों का तो सारा काम मान-सम्मान से ही हो जाता है।।

फिर से बचपन

फिर से बचपन लौट रहा है शायद, जब भी नाराज होता हूँ खाना छोड़ देता हूँ.!!

मेरी ऊंचाइयों को देखकर

मेरी ऊंचाइयों को देखकर हैरान है बहुत से लोग… ,पर किसी ने मेरे पैरों के छाले नहीं देखे…।

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