गीली लकड़ी सा इश्क

गीली लकड़ी सा इश्क उन्होंने सुलगाया है…. ना पूरा जल पाया कभी, ना बुझ पाया है….

देखते हैं अब क्या मुकाम

देखते हैं अब क्या मुकाम आता है साहेब, सूखे पत्ते को इश्क़ हुआ है बहती हवा से.

वो जो मुझसे गैर था नज़दीक

वो जो मुझसे गैर था नज़दीक आया सुबह मेरे जब शाम उसे ले चली वो और करीब आ गया ।

आज गुमनाम हूँ तो फासला रखा है

आज गुमनाम हूँ तो फासला रखा है मुझसे कल मशहूर हो जाऊँ तो कोई रिश्ता मत निकाल लेना

गुफ्तगू करते रहा कीजिये

गुफ्तगू करते रहा कीजिये यही इंसानी फितरत है, सुना है, बंद मकानों में अक्सर जाले लग जाते हैं…

चुप्पियां जिस दिन खबर हो जायेगी

चुप्पियां जिस दिन खबर हो जायेगी, कई हस्तियां दर – ब – दर हो जायेगी

जीभ में हड्डिया नहीं

जीभ में हड्डिया नहीं होती फिर भी जीभ हड्डियां तुड़वाने की “ताक़त” रखती हैं..!!

शक तो था मोहब्बत में

शक तो था मोहब्बत में नुक़सान होगा ।। .. पर सारा हमारा ही होगा ये मालूम न था!!

बहुत कुछ खो चूका हूँ

बहुत कुछ खो चूका हूँ, ऐ ज़िन्दगी तुझे सवारने की कोशीश में, अब बस ये जो कुछ लोग मेरे हैं, इन्हें मेरा ही रहने दे….

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं अपना शहर छोड़ने को, वरना कौन अपनी गली मे जीना नहीं चाहता….. हसरतें आज भी खत लिखती हैं मुझे, पर मैं अब पुराने पते पर नहीं रहता ।।

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