मुहब्बतों से फ़तेह

मुहब्बतों से फ़तेह करते हैं हम ‘दुश्मन’ दिलों को…. हम वो सिकंदर हैं, जो लश्कर नहीं रखते ….!!

दब गई थी

दब गई थी नींद कहीं करवटों के बीच, दर पे खड़े रहे थे कुछ ख्वाब रात भर।

वो जो तुमने

वो जो तुमने एक दवा बतलाई थी गम के लिए.. ग़म तो ज्यूँ का त्यू रहा बस हम शराबी हो गये..

ना सोचो ख़ुदको

ना सोचो ख़ुदको तन्हा बना रहा हूँ मैं। तेरी यादें समेटके साथ ले जा रहा हूँ मैं।

तुझसे मिलकर यूं

तुझसे मिलकर यूं मुझको गुमान हो गया है। हर शख्स शहर का मुझसे परेशान हो गया है।

जानती हूँ फिर भी

जानती हूँ फिर भी पूछती हूँ मैं, तुम आइना में देखकर बताओं की मेरी पसंद कैसी है|

तुम्हारी राह में

तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते, इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते…

ये रहेगी यूँ

ये रहेगी यूँ ही ख़ाली पूरी होगी खला कैसे। ज़िक्र तेरा ही ना हो तो महफ़िल भला कैसे।

तेरे ख्वाबों का भी

तेरे ख्वाबों का भी है शौक, तेरी यादो में भी है मजा, समझ नहीं आता सो कर तेरा दीदार करूँ या जाग कर तुझे याद करूँ…

ख़ंजर चले किसी पे

ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम… सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है…

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