अक्सर चाकू-छुरी वही खोलते है

अक्सर चाकू-छुरी वही खोलते है जो कमज़ोर होते है, वरना हम जैसों का तो सारा काम मान-सम्मान से ही हो जाता है।।

मुस्कुराने की आदत

मुस्कुराने की आदत भी कितनी महँगी पड़ी हमको,…. भुला दिया सब ने ये कह कर की “तुम तो अकेले भी खुश रह लेते

फिर से बचपन

फिर से बचपन लौट रहा है शायद, जब भी नाराज होता हूँ खाना छोड़ देता हूँ.!!

मेरी ऊंचाइयों को देखकर

मेरी ऊंचाइयों को देखकर हैरान है बहुत से लोग… ,पर किसी ने मेरे पैरों के छाले नहीं देखे…।

लफ्जों में उलझाना नहीं

लफ्जों में उलझाना नहीं आता, बात साफ है की, बहुत याद आ रहे हो तुम…..

फ़रेब-ए- ज़िन्दगी

फ़रेब-ए- ज़िन्दगी खाकर भी चालाकी नहीं आई, कि पानी में भी रहकर भी हमको तैराकी नहीं आई…!

ख्वाहिश उनकी एक

ख्वाहिश उनकी एक पुरानी साइकिल की है…. इमारतों के नीचे, जो महँगी गाड़ियाँ धोते हैं….

Kamaal hai na

Kamaal hai na Aankhein तलाब nahi hoti phir bhi भर aati hai . Aur . Insaan मौसम nahi hota phir bi बदल jaata hai.

गुमसुम बैठ न जाना

गुमसुम बैठ न जाना साथी, दीपक एक जलाना साथी! सघन कालिमा जाल बिछाए, राह देहरी नजर न आए, विजय की राह दिखाना साथी, दीपक एक जलाना साथी! आ सकता है, कोई झोंका, क्योंकि हवा को किसने रोका! दोनों हाथ लगाना साथी, दीपक एक जलाना साथी!!

Mere Lahje Ki

Mere Lahje Ki Mithaas Tujhe Bahot Rulaygi Jab Teri Be Rukhi par koi Be Rukhi Dikhayga

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