खुशबू सी आ रही है

खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की, खिडकी खुली है ग़ालिबन उनके मकान की…!

यादों को दुरुस्त

यादों को दुरुस्त रखा किजिये….. मत मोडो मुझे, मैं वर्क नही तेरी किताब का…!!

रहने दे कुछ

रहने दे कुछ बातें, यूँ ही अनकही सी ! कुछ जवाब तेरी आँखों में, अटके हुए देखे हैं…

बेशर्म हो गयी हैं

बेशर्म हो गयी हैं ये ख्वाहिशें मेरी मैं अब बिना किसी बहाने के तुम्हे याद करने लगा हूँ|

आँख खुली तो

आँख खुली तो जाग उठी हसरतें तमाम उसको भी खो दिया जिसको पाया था ख्वाव में|

उनकी जब मर्जी होती है

उनकी जब मर्जी होती है वो हमसे बात करते है हमारा पागलपन तो देखिये हम पूरा दिन उनकी मर्जी का इंतज़ार करते हैं…

तुम बदले तो

तुम बदले तो मजबूरियाँ थी हम बदले तो बेवफ़ा हो गए|

दिल भर ही गया

दिल भर ही गया है तो, मना करने मे डर कैसा… मोहब्बत मे बेवफओ पर, कोई मुकदमा थोडे होता है…

शाम ढलते ही

शाम ढलते ही दरवाजे पर इंतज़ार करती हैं, तेरी यादें आज भी हमें उतना ही प्यार करती हैं।

हमारे दिल में

हमारे दिल में छूपे नफरत के अंगारो को ओर हवा ना दे । वरना तू इस आग मे जलकर राख हो जायेगी।।

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