लम्हों की दौलत

लम्हों की दौलत से दोनों महरूम रहे ,मुझे चुराना न आया, तुम्हें कमाना न आया|

मुझे मंजूर थे

मुझे मंजूर थे वक़्त के सब सितम मगर , तुमसे मिलकर बिछड़ जाना, ये सजा ज़रा ज्यादा हो गयी।।

तू मांग तो सही

तू मांग तो सही अपनी दुआओ मे बददुआ मेरे लिए मै हंसकर खुदा से आमीन कह दूंगा … !

है दफ़न मुझमे

है दफ़न मुझमे कितनी रौनके मत पूछ ऐ दोस्त…..हर बार उजड़ के भी बस्ता रहा वो शहर हूँ मैं!!

बदनाम क्यों करते हो

बदनाम क्यों करते हो तुम इश्क़ को , ए दुनिया वालो…मेहबूब तुम्हारा बेवफा है ,तो इश्क़ का क्या कसूर..!!

दिल तो करता हैं

दिल तो करता हैं की रूठ जाऊँ कभी बच्चों की तरह फिर सोचता हूँ कि मनाएगा कौन…

उसके दिल का हाल

बिना उसके दिल का हाल कैसे बतलाऊ…!! जैसे खाली बस्ता हो किसी नालायक बच्चे का…!!

तुम अपने ज़ुल्म की

तुम अपने ज़ुल्म की इन्तेहाँ कर दो, फिर कोई हम सा बेजुबां मिले ना मिले…

अब गुमशुदा हो कहीं

तुम्हें पाना…खोना अब एक…सा लगता है तुम थे मुझमें ही कहीं मुझमें ही अब गुमशुदा हो कहीं|

लिखना तो ये था

लिखना तो ये था कि खुश हूँ तेरे बगैर भी. पर कलम से पहले आँसू कागज़ पर गिर गया..

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