खामोशियों की चीत्कार सुनी है कभी … कान के परदे फाड़ सकती है..जनाब !
Category: Hindi Shayri
गुनाहों का मौसम है
गुनाहों का मौसम है, चलो इक गुनाह करें.. खुल के इक दूजे से हम वफ़ा करें !
चुपके से आकर
चुपके से आकर मेरे कान मे, एक तितली कह गई अपनी ज़ुबान मे… उड़ना पड़ेगा तुमको भी, मेरी तरह इस तूफान मे…
तुम्हें जरा सलीका नहीं
तुम्हें जरा सलीका नहीं अपनी चीजें सम्भालने का.. जाते वक्त अपनी महक यहीं छोड़ गए हो…
बडी अजीब मुलाकातें
बडी अजीब मुलाकातें होती थी हमारी,वो किसी मतलब से मिलते थे और हमे तो सिर्फ मिलने से मतलब था…
ये तन्हा रात
ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ उसे ढूँडें कि उस को भूल जाए|
आईना नज़र लगाना
आईना नज़र लगाना चाहे भी तो कैसे लगाए काजल लगाते है वो आईने में देखकर|
बख्शे हम भी न गए
बख्शे हम भी न गए, बख्शे तुम भी न जाओगे वक्त जानता है….हर चेहरे को बेनकाब करना|
ना जाने इतनी मुहब्बत
ना जाने इतनी मुहब्बत कहां से आई है.. अब तो ये दिल भी उसकी खातिर मुझसे रूठ जाता है….!
आदत मुझे अंधेरो से
आदत मुझे अंधेरो से डरने की डाल कर, एक शख्स मेरी ज़िंदगी को रात कर गया !!