बिमार की चाहत है

बिमार की चाहत है, जख्म के भरने की। जख्म की ख्वाहिश है, बिमार के मरने की॥ दोनो भी जुनून से, खेल रहे जुआ। मसल देगी तकदीर को, आपकी दुआ॥

किस्मत वालो को ही

किस्मत वालो को ही मिलती हे पनाह दोस्तों के दिल में। यू ही हर शख्स जन्नत का हक़दार नही होता

बचपन में खेल आते थे

बचपन में खेल आते थे हर इमारत की छाँव के नीचे… अब पहचान गए है मंदिर कौनसा और मस्जिद कौनसा।।

तेरा मिलना ऐसे होता

तेरा मिलना ऐसे होता है जैसे कोई हथेली पर एक वक़्त की रोजी रख दे…

हम तो बस तेरी सादगी

हम तो बस तेरी सादगी पर मरते हैं… और आप बेकार में ही इतना संवरते हो…

ख्वाहिश ये बेशक नही

ख्वाहिश ये बेशक नही कि “तारीफ” हर कोई करे…! मगर “कोशिश” ये जरूर है कि कोई बुरा ना कहे..” संभाल के खर्च करता हूँ खुद को दिनभर … हर शाम एक आईना मेरा हिसाब करता है ..

महोब्बतों से जाने क्यों

महोब्बतों से जाने क्यों यकीन अब तो उठ सा चला है दोस्तों…. वफा भी खाये कसम जिसकी, हमें उस वफा कि तलाश है…… .

उम्र भर जुदा नहीं होते

उम्र भर जुदा नहीं होते, दर्द भी उसूल के पक्के होते है.

कोई वहम ही था जो

कोई वहम ही था जो इस गली में मुड़ आये वरना पिछले मोड़ पे एक रास्ता और भी था ..

अगर जिन्दा हो तो

अगर जिन्दा हो तो जिन्दा नजर आना जरूरी है अगर बात आए उसूलों पर तो टकराना जरूरी है|

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