सारी उम्र गुज़री

सारी उम्र गुज़री यूँ ही रिश्तों की तुरपाई में….. मन के रिश्ते पक्के निकले, बाक़ी उधड़ गए कच्ची सिलाई में ..

मुझसे मत पूछा कर

मुझसे मत पूछा कर ठिकाना मेरा, तुझ में ही लापता हूँ कहीं…. अब भी चले आते हैं ख्यालों में वो, रोज लगती है हाजरी उस गैर हाजिर की..

कतार में खड़े

कतार में खड़े है खरीदने वाले, शुक्र है मुस्कान नहीं बिकती..!!!

खेल रहा हूँ

खेल रहा हूँ इसी उम्मीद पे मुहब्बत की बाजी.! कि एक दिन जीत लूँगा उन्हें, सब कुछ हार के अपना..!

गहन शौध मे

गहन शौध मे पाया गया हे कि ”अकड़” शब्द में कोई मात्रा नहीं है, पर ये अलग अलग मात्रा में हर इंसान में ही मौजूद है..!!!

मिठास रिश्तों कि

मिठास रिश्तों कि बढाए तो कोई बात बने, मिठाईयाँ तो हर साल मीठी बनती है…!!

मैं कई दफा चूल्हे

मैं कई दफा चूल्हे के आगे से भूखा उठा हूँ ऐ रोटी … अपना पता बतादे, जहाँ तू बरबाद होती है

सुकून-ऐ-दिल

सुकून-ऐ-दिल के लिए कभी हाल तो पूछ लिया करो… .. मालूम तो हमें भी है कि हम आपके कुछ नही लगते ।

कुछ उम्र की पहली मंज़िल

कुछ उम्र की पहली मंज़िल थी.. … कुछ रस्ते थे अनजान बहुत ।

मुस्कान बेचकर आंसू

मुस्कान बेचकर आंसू खरीद लेते है..! मां बाप कभी मुनाफे का व्यपार नही करते..!!

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