ज़िन्दगी जब चुप सी

ज़िन्दगी जब चुप सी रहती है मेरे खामोश सवालो पर तब दिल की जुबाँ स्याही से पन्नें सजाती है

ये जान भी निकलेगी

ये जान भी निकलेगी थोड़ा इंतज़ार तो कर तेरे इश्क़ ने मारा है बचूँगा नहीं|

सोचना ज़रूरी है

सोचिये, सोचना ज़रूरी है आग को भी हवा ज़रूरी है दो जुदा रास्ते बुलाते हैं और इक फ़ैसला ज़रूरी है अपने हालात क्या कहे दुनिया बस ये जानो- दुआ ज़रूरी है|

अब ये न पूछना की

अब ये न पूछना की.. ये अल्फ़ाज़ कहाँ सेलाता हूँ, कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों के, कुछ अपनी सुनाता हूँ|

हम न समझे थे

हम न समझे थे बात इतनी सी , ख्वाब शीशे के दुनिया पत्थर की…

लफ्जों से फतह करता हूँ

लफ्जों से फतह करता हूँ लोगों के दिलों को…”यारों…!” मैं ऐसा बादशाह हूँ जो कभी लश्कर नहीं रखता हूँ…!

चलो इश्क़ में

चलो इश्क़ में कुछ यु अंदाज़ अपनाते हैं तुम आँखें बंद करो हम तुम्हे सीने से लगाते हैं|

देख के दुनिया को

देख के दुनिया को हम भी बदलेंगे अपने मिज़ाज ए ज़िन्दगी …. राब्ता सबसे होगा वास्ता किसी से नहीं

हर बात मानी है

हर बात मानी है सर झुकाकर तेरी ए ज़िन्दगी …. हिसाब बराबर कर तू भी तो कुछ शर्ते मान मेरी…

ऐ जिन्दगी तेरे जज्बे को

ऐ जिन्दगी तेरे जज्बे को सलाम… मंजिल पता है के मौत है फिर भी दौड रही है….।।

Exit mobile version