वाकिफ तो रावण भी था, अपने अंजाम से….. जिद तो अपने अंदाज से जीने कि थी……
Category: प्यार शायरी
दिल को हल्का कर लेता हूँ
दिल को हल्का कर लेता हूँ लिख-लिख कर। लोग समझते हैं मैं शायर हो गया हूँ।।
बुरी आदतें अगर वक़्त पे ना
बुरी आदतें अगर, वक़्त पे ना बदलीं जायें… तो वो आदतें, आपका वक़्त बदल देती हैं”…..
जब तक हम ये जान पाते हैं
जब तक हम ये जान पाते हैं कि ज़िन्दगी क्या है तब तक ये आधी ख़तम हो चुकी होती है.
माँ-बाप का घर बिका तो बेटी
माँ-बाप का घर बिका तो बेटी का घर बसा, कितनी नामुराद है ये रस्म दहेज़ भी !!
अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं
अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं देता बरसों मैं इसी शहर का महबूब रहा हूँ
गीली लकड़ी सा इश्क
गीली लकड़ी सा इश्क उन्होंने सुलगाया है…. ना पूरा जल पाया कभी, ना बुझ पाया है….
कभी इनका हुआ हूँ मैं..
कभी इनका हुआ हूँ मैं… कभी उनका हुआ हूँ मैं… खुद के लिए कोशिश नहीं की… मगर सबका हुआ हूँ मैं… मेरी हस्ती बहुत छोटी… मेरा रुतबा नहीं कुछ भी… लेकिन डूबते के लिए… सदा तिनका हुआ हूँ मै…
नीचे गिरे सूखे पत्तों पर अदब से
“नीचे गिरे सूखे पत्तों पर अदब से ही चलना ज़रा कभी कड़ी धूप में तुमने इनसे ही पनाह माँगी थी।”
मैं थक गया था …
मैं थक गया था … परवाह करते करते, जब से ला-परवाह हुआ हूँ आराम सा है..!!!