उनको भी है

ग़ुरूर उनको भी है, ग़ुरूर हमको भी.. बस इसी जंग को जीतने में हम दोनों हार गये..

अपने ही अपनों

अपने ही अपनों से करते है अपनेपन की अभिलाषा… पर अपनों ने ही बदल रखी है, अपनेपन की परिभाषा !!

कर रहा हूँ

कर रहा हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ…. की मंजिल भी मिलेगी … सब आज़माइशों के बाद…

आज रिश्तों में

फासलें इस कदर हैं आज रिश्तों में, जैसे कोई घर खरीदा हो किश्तों में

यादों का कारोबार

बहुत मुश्किल से करता हूँ तेरी यादों का कारोबार.. मुनाफा कम ही है लेकिन गुज़ारा हो ही जाता है..

हम लबों से

हम लबों से कह ना पाये, उनसे हाल – ए –दिल कभी, और वो समझे नही यह ख़ामोशी क्या चीज है..

दिल्लगी पे जालिमहम

कभी रूखसत करना मेरी दिल्लगी पे जालिम हम बजारो मे नही हजारो मे मिलते है….

हमारी भी गलतियाँ

हाथ जख्मी हुए तो कुछ हमारी भी गलतियाँ थी,,, लकीरों को मिटाने चले थे किसी एक को पाने के लिए…

मोहब्बत की राह

रहता है मशग़ला जहाँ बस वाह-वाह का मैं भी हूँ इक फ़कीर उसी ख़ानक़ाह का मुझसे मिल बग़ैर कहाँ जाइयेगा आप इक संगे-मील हूँ मैं मोहब्बत की राह का

जो भी आता है

जो भी आता है एक नई चोट देकर चला जाता है, माना मैं मजबूत हूँ लेकिन…… पत्थर तो नहीं.!

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