उम्र लगी कहते हुए

उम्र लगी कहते हुए….दो लफ्ज़ थे एक बात थी,, एक दिन सौ साल का..सौ साल की वो रात थी..!!!

महफिल लगी थी

महफिल लगी थी बद दुआओं की, हमने भी दिल से कहा., उसे इश्क़ हो, ! उसे इश्क़ हो!! उसे इश्क़ हो !!!

तेरे दिल में

तेरे दिल में ठिकाना रहे उम्र भर… फिर किसी आशियाने की परवाह नहीं..

फिर से आँखों में

फिर से आँखों में गीलापन उतर आया, जब बातों-बातों में आज तेरा जिक्र आया।

तुम्हारी याद की

तुम्हारी याद की…… शिद्दत में….. बहने वाला अश्क…!!! ज़मीं में बो दिया जाए…. तो आँख उग आए…!!!!

अच्छा हुआ कि

अच्छा हुआ कि तूने हमें तोड़ कर रख दिया, घमण्ड भी तो बहुत था हमें तेरे होने का ..

तुझे और कैसे चाहूँ

अपनी सांसो भी कर दी हैं तेरी साँसों में शामिल अब इस से ज्यादा तू ही बता तुझे और कैसे चाहूँ|

ज़माने की रीत है…!

भूलना तो ज़माने की रीत है…!!! मग़र तुमने शुरुआत मुझसे क्यों की…!!!

दौलत की दीवार ने

दौलत की दीवार ने, कुछ यूँ तब्दील रिश्ते कर दिये…. देखते ही देखते भाई मेरा, पड़ोसी हो गया….!!!!

तूने तीर चला कर

तूने तीर चला कर फक़त दाद की वसूल…… सीने पे हमने खा के ….ज़माना हिला दिया….

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