एक तरफा ही सही

एक तरफा ही सही…प्यार तो प्यार है… उसे हो ना हो…लेकिन मुझे बेशुमार है…!

थोड़ी सी तमीज़

थोड़ी सी तमीज़ मुझे भी फ़रमा मेरे मौला, रंजिश के इस दौर में और भी बेख़ौफ़ होता जा रहा हूँ….

उनके रूखसार पै

उनके रूखसार पै बहते हुए आंसू तौबा, हमने शोलों पै मचलती हुई शबनम देखी |

काली रातों को भी

काली रातों को भी, रंगीन कहा है मैंने; तेरी हर बात पे, आमीन कहा है मैंने!

जब हम लिखेंगे

जब हम लिखेंगे दास्तान-ए-जिदंगी तो, सबसे अहम किरदार तुम्हारा ही होगा…

लफ़्ज़ों पे वज़न

लफ़्ज़ों पे वज़न रखने से नहीं झुकते मोहब्बत के पलड़े साहिब हलके से इशारे पे ही, ज़िंदगियां क़ुर्बान हो जाती हैं

उनको सुनाने के लिए

दो लफ्ज़ उनको सुनाने के लिए, हज़ारों लफ्ज़ लिखे ज़माने के लिए |

ना जाने क्यों

ना जाने क्यों रेत की तरह निकल जाते है हाथों से वो लोग, जिन्हें जिन्दगी समझ कर हम कभी खोना नही चाहते…..!!!!!

सितम पर सितम

सितम पर सितम कर रहे है मुझ पर, वो मुझे शायद अपना समझने लगे हैं|

हमारे दिल में भी

हमारे दिल में भी झांको अगर मिले फुरसत… हम अपने चेहरे से इतने नज़र नहीं आते|

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