उम्र भर ..बस उम्र का .. पीछा किया…
काम हमने कौन सा .. सीधा किया ;
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पांव जब .. जमने लगे .. मेरे कहीं
दिल निकल भागा .. ज़हन रोका किया ;
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रोशनी .. अपनी लुटा दी .. हर जगह..
पूछते हो तुम .. कि हमने क्या किया ;
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राह चलते ..जब कहीं .. मौक़ा मिला..
दिल वही ठहरा.. रुका ..जितना किया ;
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जो मिला.. जितना मिला .. हर हाल में…
रोज़ .. उसके दर पे ही …सज़दा किया ;
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हाँ .. नहीं रक्खा अना को .. ताक़ पर..
प्रेम से पर .. सब यहाँ .. जीता किया ;
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ज़ुर्म है गर ये .. तो दो मुझको सज़ा …
मौत से कब .. दिल मिरा दहला किया ;
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प्यास को पी कर … दबा कर भूख को…
रात दिन बस प्यार ही .. ओढ़ा किया ;
एक नदिया सी ‘तरू’ … बहती रही…
कब किसी .. दीवार ने .. रोका किया…!!