परिंदों को तो

परिंदों को तो खैर रोज कहीं से, गिरे हुए दाने जुटाने हैं
पर वो क्यों परेशान हैं, जिनके भरे हुए तहखाने हैं|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *