जो उड़ गए परिन्दे उनका अफ़सोस क्यों करूँ,
यहाँ तो पाले हुए भी गैरों की छतों पर उतरते हैं|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जो उड़ गए परिन्दे उनका अफ़सोस क्यों करूँ,
यहाँ तो पाले हुए भी गैरों की छतों पर उतरते हैं|