रहता हूं किराये के घर में…
रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं….
मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी…
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं….
जल जायेगा ये मेरा घर इक दिन…
फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं….
खुद के सहारे मैं श्मशान तक भी ना जा सकूंगा…
इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ ।